अमेरिका समेत विश्व के अनेक देशो में लोकशाही
शासन व्यस्था हे । लोकशाहीमें राजकीय पक्षों की प्रतियोगिता,आक्षेप बाजी और
एक दुसरे को निचा दिखाना यह सब होना बहुत स्वाभाविक हे । भारत में भी यह सब होता
हम देख रहे हे, लेकिन अमेरिका समेत विश्व के दुसरे देशो की तुलना में भारत के
राजकारण और वहां के राजकारण में एक अंतर साफ दिखाई देता हे । जब देश की सुरक्षा के
सामने कोई खतरा हो तब वहां के सब राजकीय पक्ष आक्षेप-प्रतिआक्षेप करने के बजाय एक
होकर् देश विरोधी तत्वों के सामने की जा रही क़ानूनी प्रक्रियाओं में सहयोग देते हे
।
हमारी यह कमनसीबी हे की यहाँ तो कुछ राजकीय
पक्ष अपनी सता भूख में इस कदर गिर गए हे, की वो देश विरोधी तत्वों को साथ देने में
जरा सी भी हिचकिचाहट महसूस नहीं करते । सता पक्ष को परेशान करने एवम् विफल दिखाने
हेतु देश की शांति व एकता जोखिम में आ जाये एसे निवेदन देना,देश के टुकडें हो एसे
सपने देखनेवालो को साथ देना,देश विरोधी तत्वों को निर्दोष ठहेराने के लिए प्रजा
गुमराह हो एसे निवेदन करना यह सब बातें पिछलें चार बर्षो में मानो बहुत आम बात हो
गई हे । पाकिस्तान भले ही अपना दुश्मन देश हे लेकिन वहां की एक बात तो सराहने
योग्य हे की जब देशहित का कोई भी निर्णय हो तब वहां के सब राजकीय पक्ष एकमत होकर
देश की सुरक्षा के संबंध में कोई समझौता नहीं करते या कभी देश विरोधी तत्वों का
साथ नहीं देते ।
हालही में देश की एन्टी टेररिस्ट स्क्वोड ने
प्रधानमंत्रीश्री की हत्या और देश की आंतरिक जोखिम में डालने का षड्यंत्र रचने के
आरोप में ६ लोगों को गिरफ्तार किया हे । इस बार भी अपनी
गलती दोहराते हुए कांग्रेस के राहुल गाँधी समेत विरोध पक्षों के कई नेताओं ने इन
आरोपियों की तरफदारी करनी शुरू करदी उतना ही नहीं किन्तु उनको मानव अधिकार
कार्यकर्ता बताते हुए सरकार के सामने आक्षेप बाजी चालू कर दी । इन सभी ६ आरोपियों
का इतिहास टटोला तो पता चला की यह सब कोई मानव अधिकारों के लिए काम करते कार्यकर
नहीं किन्तु खतरनाक अर्बन नक्सलवादी हे जो पहेले भी देश विरोधी साजिस रचने के
गुनाहों में सजा भुगत चुके हे और देखनेवाली बात यह हे की तब कांग्रेस की सरकार थी ।
जब कांग्रेस सरकार गिरफ्तार करे तब यह माओवादी और नक्सलवादी हे किन्तु भाजपा सरकार
गिरफ्तार करे तब यहीं लोग ह्यूमन राइट्स एक्टिविस्ट बन जाते हे । हे न सोचनेवाली
बात ।
इसी तरह कांग्रस ने एनआरसी पर भी हंगामा मचाया
हे । आसाम में नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटिज़न के ड्राफ्ट में ४० लाख लोगों के नाम सामिल
नहीं हुए क्यूंकि यह लोग अपने भारतीय होने की पहेचान साबित नहीं कर शके । इनमे
ज्यादातर लोग बांग्लादेशी हे । १९८५ में राजीव
गाँधी सरकार ने आसाम एकोर्ड करार के तहत गैरकानूनी प्रवासियो की पहेचान करके उनको
अपने देश में वापिस भेजने का प्रावधान किया । उसके बाद २००९ में एक एनजीओ द्वारा
की गई याचिका पर २०१३ में सुप्रीमकोर्ट ने एनआरसी लिस्ट अपडेट करने का आदेश दिया
और २०१४ से यह कार्य चालू हुआ,अब इसमें सरकार ने क्या गलत कर दिया ? किसीभी देश की
सरकार ऐसे घुसपैठियों को अपने देश में रहेंने देगी ? देश की सुरक्षा और कानून
व्यवस्थाओं को जोखिम में डालकर सिर्फ वोटबेंक के लिए ऐसे लोगों की तरफदारी करना
कितना उचित हे ? आपका फिरसे सतामें आना ज्यादा महत्वपूर्ण हे या देश की सुरक्षा ?
रोहिंग्या लोगों के लिए भी कांग्रेस का यहीं
स्टेंड रहा । बर्मा के रोहंग प्रान्त के मूल निवासी रोहिंग्या लोगों का भगवान्
बुध्ध के अनुयायी एसे बर्मीज़ लोग भी स्वीकार करने को राज़ी नहीं,बांग्लादेश भी इनको
शरण देने से इनकार कर दिया हे । इनमें से कुछ रोहिंग्या आतंकवादीयों से जुड़े हुए
हे एसा ऑफिशियल रिपोर्ट हे । इन सब तथ्यों के बाद भी क्या इन लोगों को अपने देश
में पनाह देना उचित हे ? क्या हमारा देश कोई कबाडखाना हे की दुनियाभर का कचरा यहीं
इक्कठा करते रहे । बहुत दुःख की बात हे की कांग्रेस के नेताओं ने इन निराश्रितों
को आश्रय देने के लिए खुल्लेआम अनुरोध किया था । इनका मकसद सिर्फ राजकीय हे । वो
मानते हें की इन घुसपैठियों को आश्रय देने से अपनी वोटबेंक मजबूत हो जाएगी । एसे
राजकारणीओ को देश की जरा भी फ़िक्र नहीं ।
देश की सुरक्षा के लिए जो खतरा पैदा करे फिर
चाहे वो कोई भी हो,चाहे नक्सलवादी हो या ह्यूमन राइट्स एक्टिविस्ट के स्वांग में
अर्बन नक्सलवादी हो । चाहे आतंकवादी हो,रोहिंग्या हो या फिर बांग्लादेशी हो,किसी
भी देश विरोधी तत्वों के लिए इस देश में जगह नहीं हे ।
देश के सार्वभौमत्व और सुरक्षा की बाबतो में
कांग्रेस समेत सभी विरोधपक्ष अपना निजी स्वार्थ और वोटबेंक की राजनीती छोड़कर
देशहित के निर्णयों में सतापक्ष को समर्थन देकर अपना भारतीय होने का धर्म निभाएं
इसी प्रार्थना के साथ भारत माता की जय – वंदेमातरम्
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