ગુરુવાર, 13 સપ્ટેમ્બર, 2018

न ज्ञातिवाद न जातिवाद,सबसे बड़ा राष्ट्रवाद



आज हम २१वि सदी के १८वें वर्ष में पहोंच गए हे.२१वि सदी में भारतने कई क्षेत्रो में काफी अच्छी प्रगति की हे.परमाणु टेक्नोलोजी की बात हो,स्वदेशी मिसाइल टेक्नोलोजी की बात हो,मंगलयान,चंद्रयान और अब समानव गगनयान की तैयारी हो, या सोफ्ट्वेयर टेक्नोलोजी की बात हो,इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलोपमेंट की बात हो,खेलकूद की बात हो या फिर देश के आर्थिक विकास की बात हो.सभी क्षेत्रो में हमारा देश बहोत अच्छी प्रगति कर रहा हे.किन्तुं यह अच्छी खबर के बिच हमारे लिए एक बुरी खबर,एक कड़वा सच यह भी हे की २१वि सदी में भी भारत में ज्ञातिवादजातिवाद का जहर लुप्त होने की बजाय ओर ज्यादा फ़ैल रहा हे.

१९४७ में भारत आज़ाद हुआ उस कालखंड के आसपास या फिर उसके बाद आज़ादी मिली हो ऐसें विश्व के अन्य देशों का अध्ययन करने से पता चलता हे की जीन देशों में ज्ञातिवाद,जातिवाद सम्प्रदायों के जगड़ो के कारण आंतरविग्रह हुआ हो एसे सभी देश अधोगति की गर्त में डूब गए.लेकिन जिस देश के नागरिकोनें राष्ट्रप्रथम की भावना के साथ देश की प्रगति और अपने देश के सम्मान को पुनःप्राप्त करने के लक्ष्य के साथ एकजुट होकर महेनत की हे ऐसें सभी देशों ने आज प्रगति के अप्रतिम शिखर को प्राप्त किया हे और सुख-समृध्धि के साथ वहां द्वेषमुक्त समाज का निर्माण भी हुआ हे.

भारत की आज़ादी के साथ या उसके बाद आज़ाद हुए चीन, दक्षिण कोरिया, इंडोनेशिया, वियेतनाम, जॉर्डन ,एस्टोनिया, इज़राएल आदि देशो की जिस प्रकार से प्रगति हुई हे उसकी तुलना में कई चीजो में हम बहोत पीछे रह गए हे.इसका मुख्य कारण ज्ञातिवाद का जहर और हम सब में राष्ट्रभावना का अभाव.
आज हम सब एक होने के बजाय दिन प्रतिदिन ओर ज्यादा विभाजित हो रहे हे.सभी ज्ञाति के लोग अपना संख्याबल दूसरी ज्ञाति से ज्यादा हे यहीं दिखाने में मशगूल हे.बड़े आश्चर्य की बात तो यह हे की सभी ज्ञातिओं में सबसे ज्यादा गरीब कौन यह साबित करने की मानो प्रतियोगिता चल रही हे.हमारी सबसे बड़ी कठिनाई तो यह हे अनपढ़ तो ठीक लेकिन पढेलिखे लोग भी ज्ञातिवाद का जहर घोल रहे हे.देश के कई राजकीय पक्ष इसका फायदा उठाकर अपने राजकीय स्वार्थ के खातिर ज्ञाति-जाती के नाम पर आन्दोलन करवाकर देश राज्यों को विषम परिस्थितियों में डालकर पिशाची आनंद लेते हे.जैसे जैसे ज्ञातिवाद का ग्राफ बढ़ता हे, वैसे वैसे देश की प्रगति का ग्राफ गिरता चला जाता हे,यह सामान्य गणितीय बात भी जब लोग समजे और तथाकथित बुध्धिजीवी लोग भी जब ज्ञातिवाद के पोषणाहार बनते हे तब उसकी सोच पर तरस आता हे.देश के पढेलिखे युवाओं भी जब ज्ञातिवाद का जहर ओकते हे तब बहोत दर्द के साथ मन में यह सवाल उठता हे की क्या ऐसी २१वि सदी की कल्पना हम कर रहे थे ?जिस देश का युवा अपने देश की प्रगति और विकास के लिए महेनत करने की बजाय जब जातिगत आंदोलनों में पत्थर उठाकर किसी बस का शीशा तोड़ता हुआ नजर आए तब समज लेना की वह समाज या ज्ञाति अधोगति के मार्ग पर हे.

सभी ज्ञातियों समाजों के आगेवान और सभी राजकारणी ज्ञातिवाद के नाम पर समाज को भड़काना छोड़कर समाज में फैली हुई बदियो को दूर करने का प्रयत्न करेंगे और समाज के युवाओ ज्ञातिवाद की संकुचित मानसिकता से बाहर निकलकर देश के लिए सोचेंगे तभी सही मायने में देश के सुनहरे दिनो की शुरुआत होगी.ज्ञातिवाद ही देश की प्रगति के लिए सबसे बड़ी बाधा हे.देश की प्रगति में ही हमारी प्रगति हे.ज्ञाति-जाती धर्म-संप्रदायों के दायरे से बहार आकर नये भारत के निर्माण के लिए हम सब संकल्पबद्ध बने.आज से,

हमारी ज्ञातिभारतीय , हमारी जातीभारतीय और हमारा धर्म भीभारतीय हे.

इसी मंत्र को अपनाकर हम सब ज्ञाति-जाती धर्म के भेदभाव छोड़कर राष्ट्रनिर्माण में सहयोगी बने यहीं प्रार्थना.भारत माता की जयवंदेमातरम्


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