एक ओर पुरे देश में गांधीजी की १५०वीं जन्मजयन्ती का उत्सव मनाने की शुरुआत हो चुकी हे. तो दूसरी ओर २०१९ के लोकसभा चुनावों की तैयारी भी जोरशोर से शुरू हो गई हे.इसबार का चुनाव महज़ सिर्फ दो राजकीयपक्षों के बिच का चुनाव नहीं हे, किन्तुं दो विपरीत विचारधाराओं की लड़ाई हे.एक ओर राष्ट्रवादी विचारधारा रखनेवाले राजकीयपक्ष एवम् राष्ट्रप्रेमी लोग एकजुट हो रहे हे, तो दूसरी ओर साम्यवादी विचारधारा की ओर जुकाव रखनेवाले राजकीयपक्ष एवम् इस विचारधारा को समर्थन देनेवाले लोग एकजुट होते नजर आ रहे हे. ’दुश्मन का दुश्मन अपना दोस्त’ इस उक्ति के मुताबिक भाजपा के सामने कांग्रस पार्टी का जुकाव साम्यवाद की तरफ होता साफ दिखाई पड़ता हे.वैसे भी अगर इतिहास को टटोले तो पता चलता हे की कांग्रेस और साम्यवादीओं का गठबंधन बहोत पुराना हे.१९७२में कांग्रेस का विभाजन हुआ और साम्यवादीओं की मदद से इंदिरा गाँधी सता में बनी रही.अपनी सता टिकीं रहे इसलिए इंदिरा गाँधी ने कई सरकारी संस्थानों की रचना करके भारतीय साम्यवादीओं को कई महत्वपूर्ण स्थानों पर नियुक्ति किया.एक साम्यवादी विचारक नुरुल हसन को तो केन्द्रीय शिक्षामंत्री भी बनाया गया था.
समय समय पर गांधीजी ने कई लेखों,वार्तालापों और वक्तव्यों द्वारा मार्क्सवाद व साम्यवाद के प्रति अपने विचार व्यक्त किये हे.
‘’कम्युनिस्ट समजते है की उनका सबसे बड़ा कर्तव्य,सबसे बड़ी सेवा – मनमुटाव पैदा करना,असंतोष को जन्म देना और हड़ताल कराना है.वे यह नहीं देखते की यह असंतोष,ये हड़तालें अंत में किसे हानि पहुँचाएगी.अधुरा ज्ञान सबसे बड़ी बुराइयों में से एक है.कुछ लोग ज्ञान और निर्देश रूस से प्राप्त करते है.हमारे कम्युनिस्ट इसी दयनीय हालत में जान पड़ते है.मैं इसे शर्मनाक न कहकर दयनीय कहता हूँ,क्योंकि मैं अनुभव करता हूँ की उन्हें दोष देने की बजाय उनपर तरस खाने की आवश्यकता है.ये लोग एकता को खंडित करनेवाली उस आग को हवा दे रहे है,जिसे अंग्रेज लगा गए थे.’’
२५ अक्तूबर १९४७ के दिन दिया गया महात्मा गांधीजी का यह बयान आज भी शब्दशः यथार्थ लगता हे.आज भी कई राजकीयपक्ष साम्यवादीओं के साथ मिलकर इस प्रकार के कृत्यों करते नजर आते है.
साम्यवाद की तरह गांधीजी समाजवाद के प्रचलित आधुनिक अर्थ से भी संतुष्ट नहीं थे.उनका कहेना था की ‘’पश्चिमी समाजवाद और साम्यवाद कुछ ऐसें सिध्धांतो पर आधारित है,जो हमारे भारत से भिन्न है.जैसे की उनका एक सिध्धांत यह हे की,मानव स्वभाव मूलतः स्वार्थी होने में विश्वास रखता हे.’’ १९३४ में जब जवाहरलाल नहेरु कांग्रेस को समाजवाद की और जुकाना चाहते थे तब नहेरु ने गांधीजी को समजाने के लिए एक पत्र में लिखा था की ‘’अंग्रेजी भाषा में समाजवाद का अर्थ बिलकुल स्पष्ट हे.’’ तब उसके जवाब में गांधीजी ने लिखा था की ‘’मैंने शब्दकोश देख लिया हे, किन्तुं मेरी समज में इससे कोई बढ़ावा नहीं हुआ इसलिए बताओ की उसका अर्थ समजने के लिए अब में ओर क्या पढूं ?’’ गांधीजी आधुनिक समाजवाद के बदले मानववाद को ज्यादा उच्च मान्यता देते थे.गांधीजी ने हंमेशा सत्य,अहिंसा और प्रेम का मार्ग दिखाया है.जब की मार्क्स ने व्यक्ति व जनसमूहों को हिंसा,धृणा और द्वेष का मार्ग दिखाया हे.गांधीजी के जीवन का संदेश प्रेम की ताकत का प्रदर्शन रहा,जब की मार्क्सवाद का उदेश्य धृणा का प्रदर्शन रहा.
साम्यवादीओं में समाजसेवा का भाव भी प्रेम व सदभाव की प्रेरणा से नहीं किन्तु धृणा व बदले की भावना के साथ जुड़ा हुआ होता है.मार्क्सवादी अपने इरादे पार करने हेतु हिंसा,छल-कपट,क़ानूनी-गैरकानूनी ऐसें सभी प्रकार के हथकंडे अजमाना उचित मानते है,किन्तुं गांधीजी भ्रष्ट साधनों और हिंसा के मार्ग को उचित नहीं मानते.गांधीजी मानते थे की जो बाते नैतिकता की दृष्टी से अनुचित है वह राजनैतिक दृष्टी से भी अनुचित है.साम्यवादी विचारधारा के लोग कुछ भी करके,किसी भी तरीके से उसके लक्ष्य की प्राप्ति चाहते है,जब की गांधीजी लक्ष्य प्राप्ति के साथ साधन की पवित्रता पर भी बल देते है.मार्क्स के मूल विचारों में आधारभूत वर्गसंघर्ष है.साम्यवाद का ढांचा उसी पर अवलंबित हे.विभिन्न वर्गों में टकराव,वैमनस्य और वाद-विवाद पैदा कराना यहीं उनकी उन्नति का मापदंड है.जब की गांधीजी के चिंतन में वर्ग विग्रह को कोई स्थान नहीं है.
इसी तरह गांधीजी के शब्दों में राष्ट्रवाद यानि, ‘’व्यक्ति अपने कुटुंब के लिए मरने को तैयार हो,कुटुंब अपने गाँव के लिए,गाँव अपने प्रान्त के लिए और प्रान्त अपने देश के लिए मरने को तैयार हो यहीं सच्चा राष्ट्रप्रेम है.राष्ट्रिय बने बगैर अंतर्राष्ट्रीय होना असंभव है.राष्ट्रीयता हकीकत बनें,यानि की अलग अलग धर्म,अलग अलग ज्ञाति-जाती व संप्रदायों के लोग और विभिन्न प्रान्तों के लोग संगठित बने,एक बने और सही अर्थ में इन्सान बने यही सच्ची राष्ट्रीयता है.राष्ट्रप्रेम कोई पाप नहीं है किन्तुं स्वार्थ,संकीर्णता और स्वकेन्द्रित जीवनशैली ही वर्तमान में लोगों के बिच हो रहे झगड़े का मूल कारन है, यह पाप है.सब लोग दुसरों के खर्च पर लाभ लेना चाहते है.दूसरों की पायमाली करके आगे बढ़ना चाहते है,यह पाप है.समग्र मानवसमाज की सेवा व मानवता के लाभ के लिए संगठित होना और अपनी सभी शक्तिओं का उपयोग राष्ट्रविकास के लिए करना यहीं सच्चा राष्ट्रवाद है.’’
अपने अधिकारों की बड़ी बड़ी बातें करनेवाले लोगों के लिए भी गांधीजीने कहा हे की,’’समाज को पीड़ादायक ऐसे एक बड़े अनिष्ट के बारे में आज में विवेचन करना चाहता हूँ.पैसेवाले और जमींदार अपने अपने अधिकारों की बातें करते है.दूसरी और मजदुर भी अपने अधिकारों का जिक्र करते रहेते है,रजवाड़ों के राजा भी राज्य चलाने के लिए इश्वर से प्राप्त अपने अधिकारों का जिम्मा देते रहते है और प्रजा भी उसका प्रतिकार करने के अपने अधिकारों की बाते करती रहती है.यूँही हरएक लोग और समुदाय सिर्फ और सिर्फ अपने अपने अधिकार के लिए आग्रह रखे और राष्ट्र के प्रति अपने फर्ज व धर्म का विचार भी न करे तब बहोत बड़ा अंधेर या अनर्थ हो जाता है.’’
ऊपर दिए गए गांधीजी के विचार आज की समकालीन परिस्थिति में भी उतने ही सटीक है.आज देश में हरएक वर्ग,हरएक समाज और हरएक धर्म व संप्रदायों के लोगों को राजकीयपक्षों द्वारा अपने अधीकारों के लिए भड़काने का प्रयास किया जा रहा है.मानवता,सदभावना,राष्ट्रप्रेम और राष्ट्र्विकास की बातें करनेवालो को हंसी मजाक का पात्र बनाया दिया जाता है.महात्मा गाँधी की १५०वि जयंती का उत्सव तभी सार्थक हो पायेगा जब हम सब अपने दैनंदिन जीवन में गांधीजी के विचारों को आत्मसात करके उस प्रकार से जीवन जि पायेंगे.सतालालची राजकीयपक्षों को हम राष्ट्रप्रथम के भाव के साथ अपनी एकता व समजदारी के बल पर सही पाठ पढ़ायें और लोकशाही के जतन के लिए व देश के सर्वांगी विकास के लिए राष्ट्रहित में कार्यरत शक्तिओं को साथ देकर गांधीजी के सपनों के भारत का निर्माण करने में सहयोगी बनें यहीं प्रार्थना.भारत माता की जय – वंदेमातरम्
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