रामायण में रावण के सामने विजय प्राप्त करने के बाद सुवर्णनगरी लंका में रहेने की बात को नकारते हुए भगवानश्री राम कहेते है की ‘जननी जन्म भूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी’ अर्थात मेरी जन्मभूमि,मेरी मातृभूमि मेरे लिए स्वर्ग से भी ज्यादा मूल्यवान है.
मातृ देवो भव,पितृ देवो भव एवं आचार्य देवो भव से भी ऊँचा अगर कोई भाव है तो वह हे ‘राष्ट्र देवो भव’.क्यूंकि माता-पिता और आचार्य भी जिसको सबसे ज्यादा पूजनीय मानते है वह हे मातृभूमि,अपना देश.माता हमें जन्म देती है किन्तुं हमारी वृध्धि के लिए सही वातावरण,खिलने के लिए अवसर,वैचारिक वैभव,प्रकृतिका सहवास एवं प्रगति के लिए योग्य संशाधन हमें मातृभूमि प्रदान करती है.जैसे जीवन जीने के लिए जरुरी हवा,पानी और खुराक मातृभूमि की देंन हे, वैसे ही कर्तव्य,त्याग व परोपकार की भावना भी मातृभूमि की देंन है.मातृभूमि की मिटटी के कण कण का ऋण हमारे ऊपर हे.जिस प्रकार माँ-बाप का ऋण हम कभी चूका नहीं शकते उसी तरह मातृभूमि का ऋण भी चुकाना हमारे लिए असंभव है.इसीलिए जब वीर सैनिक सरहद पर लड़ाई करने जाते हे तब घर से निकलते वक्त माँ,बहन और पत्नी कंकू तिलक कर आरती उतारती हे और पिता उसको विजयी भव के आशीर्वाद देते हुए कहते हे की मातृभूमि की रक्षा के लिए अगर अपने प्राणों का बलिदान देना पड़े तो एक क्षण के लिए भी रुकना नहीं.
राजस्थान के सुप्रसिध्ध कविश्री गौरीशंकर ने अपने काव्य ‘एक सैनिक की चाह’ में मातृभूमि के लिए बलिदान देनेवाले एक सैनिक के त्याग और समर्पण का अदभुत वर्णन करते हुए कहा हे की,
‘बोला की जय मातृभूमि है, मैंने अपना फर्ज निभाया,
अब मिट जाये चाहे मेरी यह माटी की काया,
अगर मिलेगा जन्म,लौटकर इसी धरा पर फिर आऊंगा,
मेरे प्यारे देश तुम्हेँ में हरगिज़ भूल नहीं पाउँगा.
देश की आज़ादी के लिए हज़ारों-लाखोँ लोगों ने अपने प्राणों की आहुति दी है किन्तुं आज़ादी के बाद आज भी देश के हज़ारो सैनिक त्याग और बलिदान की भावना के साथ देश की रक्षा के लिए अपना जीवन खपा रहे है.यह राष्ट्रीयता का भाव किसी दुकान पर बिकता नहीं या कहीं पर किराये पर नहीं मिलता.कई जन्मों के संस्काररुप यह भाव देश के बच्चो,युवाओं और सभी नागरिकों में सतत जागृत रहे उसके लिए हम सबको ईमानदारीपूर्वक प्रयत्नशील रहेना होगा.हम सब चाहते हे की हमारा देश परमवैभव के शिखर पर पहोंचे,प्रगति के नए कीर्तिमान स्थापित करे किन्तुं सिर्फ इच्छा करने से कुछ नहीं होता.उसके लिए पूरी निष्ठा के साथ प्रयास भी हमें ही करने होंगे.अभूतपूर्व परिणामों के लिए किये गए प्रयास भी अभूतपूर्व ही होने चाहिए.
माँ और मातृभूमि के गौरव,रक्षण एवं मान-सन्मान की जिम्मेवारी हम सबकी है.हमारे देश को अब जयचंदों व मीर जाफरों से खतरा नहीं बल्की सबसे ज्यादा खतरा सामाजिक विभाजन से है.जिस दिन देश में ज्ञाति-जाती,धर्म व प्रान्त के नाम पर विभाजन होना बंध होगा उसके बाद फिर इस देश को विश्वगुरु बनने से कोई नहीं रोक पायेगा.इसकी शुरुआत भी हम से ही करनी होगी.हम जहां पर भी हो,जिस किसी भी क्षेत्र में कार्यरत हो वहीँ पर हम बिना किसी भेदभाव के,किसी भी वाद या ज्ञाति-जाती व धर्म के बंधन से मुक्त होकर सबके साथ बंधुत्व के भाव से अपना निजी स्वार्थ छोड़कर समग्र देश के व्यापक हित के लिए सोचें,देश के कायदे-कानून व नियमों के प्रति वफादार रहकर
कार्य करे और देश की आन,बान और शान के लिए संकुचितता,सतालालसा,पद एवं पैसों की अपेक्षा छोड़ ‘राष्ट्र देवो भव’ के मंत्र के साथ कार्य करते हुए मातृभूमि के प्रति अपना कर्तव्य निभाते रहे, यहीं सच्ची देशभक्ति है.भारत माता की जय – वन्देमातरम.
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